Expect nothing, live frugally on surprise.

Sunday, October 26, 2008

पता नहीं अब कब रोऊँगा अगली बार


स्वाद चखा कल आँसू का जब बरसों बाद।
आया समन्दर का खारापन मुझको याद।।
दिल का दर्द पिघलकर बाहर आया था;
बहने दिया मैंने भी खुलकर बरसों बाद।

बहुत ज़रूरी है जीवन में रोना भी;
सीखा यारों मैंने जाकर ये बरसों बाद।
अश्कों ने धो डाला दिल के घावों को;
आज मिली कुछ राहत मुझको बरसों बाद।

वैसे तो रोना फितरत है हसीनों की;
सीख लो उनसे ये गर रहना है आबाद।
पता नहीं अब कब रोऊँगा अगली बार;
शायद बहेगा मन का नमक फिर बरसों बाद।

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