पता नहीं अब कब रोऊँगा अगली बार
स्वाद चखा कल आँसू का जब बरसों बाद।
आया समन्दर का खारापन मुझको याद।।
दिल का दर्द पिघलकर बाहर आया था;
बहने दिया मैंने भी खुलकर बरसों बाद।
आया समन्दर का खारापन मुझको याद।।
दिल का दर्द पिघलकर बाहर आया था;
बहने दिया मैंने भी खुलकर बरसों बाद।
बहुत ज़रूरी है जीवन में रोना भी;
सीखा यारों मैंने जाकर ये बरसों बाद।
अश्कों ने धो डाला दिल के घावों को;
आज मिली कुछ राहत मुझको बरसों बाद।
वैसे तो रोना फितरत है हसीनों की;
सीख लो उनसे ये गर रहना है आबाद।
पता नहीं अब कब रोऊँगा अगली बार;
शायद बहेगा मन का नमक फिर बरसों बाद।
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