हम को इस घर में जानता है कोई
दिन कुछ ऐसे गुजारता है कोई
जैसे एहसान उतारता है कोई
आईना देख के तसल्ली हुई
हम को इस घर में जानता है कोई
पक गया है शजर पे फल शायद
फिर से पत्थर उछालता है कोई
फिर नजर में लहू के छींटे हैं
तुम को शायद मुघालता है कोई
देर से गूँजतें हैं सन्नाटे
जैसे हम को पुकारता है कोई
14 comments:
आईना देख के तसल्ली हुई
हम को इस घर में जानता है कोई
Wah kya baat hai
Sneha
Kanpur
kya baat hai avi? Ishq ne Gaalib kavi bana diya warna Engineer hum bhi the kaam ke :-)
आईना देख के तसल्ली हुई
हम को इस घर में जानता है कोई
too good dear
आईना देख के तसल्ली हुई
हम को इस घर में जानता है कोई
nice n touching lines
आईना देख के तसल्ली हुई
हम को इस घर में जानता है कोई
really touching lines
पक गया है शजर पे फल शायद
फिर से पत्थर उछालता है कोई
फिर नजर में लहू के छींटे हैं
तुम को शायद मुघालता है कोई
Nice one sir
Ashok Kota
beautiful lines
regards
Ravi Ranjan
Patna
दिन कुछ ऐसे गुजारता है कोई
जैसे एहसान उतारता है कोई
आईना देख के तसल्ली हुई
हम को इस घर में जानता है कोई
wah!
Parul Lucknow
आईना देख के तसल्ली हुई
हम को इस घर में जानता है कोई
too good avi
पक गया है शजर पे फल शायद
फिर से पत्थर उछालता है कोई
फिर नजर में लहू के छींटे हैं
तुम को शायद मुघालता है कोई
beautiful r theses line like ur pure heart,god bless ya
पक गया है शजर पे फल शायद
फिर से पत्थर उछालता है कोई
nice one avi
आईना देख के तसल्ली हुई
हम को इस घर में जानता है कोई
loneliness pesonified
Regards
Rajni Roy
Patna
bue done b so lonely dear.Tek care
फिर नजर में लहू के छींटे हैं
तुम को शायद मुघालता है कोई
" beautiful creation, these lines are heart of the poem. keep it up.."
regards
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