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Wednesday, October 22, 2008

गम में स्वर का कम्पन हूँ मैं

आंसू से बना बादल हूँ मैं,
आंखों से बहा काजल हूँ मैं ,
घुंघरू जिसके तोड़े गीतों ने
वो टूटी हुई पायल हूँ मैं ।


दीपो के धुएँ की लकीर हूँ मैं,
रोते ह्रदयों का नीर हूँ मैं,
विरह में प्रेम की पीर हूँ मैं,
शीशे को टूटी तस्वीर हूँ मैं,
दस्तक दे जिसका बीता जीवन
वो टूटी हुई साँकल हूँ मैं ।


गम में स्वर का कम्पन हूँ मैं
धुंधला -धुंधला सा दर्पण हूँ मैं
आहत जो अपने तीरों से हुआ
उसकी आंखों का जल हूँ मैं ।

5 comments:

seema gupta October 22, 2008 at 3:38 PM  

गम में स्वर का कम्पन हूँ मैं
धुंधला -धुंधला सा दर्पण हूँ मैं
आहत जो अपने तीरों से हुआ
उसकी आंखों का जल हूँ मैं ।
" these words have gone deep into my heart, deadly touching..."

Regards

Prachi Pandey October 22, 2008 at 4:07 PM  

very heart touchin avinash
nicely written

Er. Nidhi Mishra October 22, 2008 at 4:08 PM  

आहत जो अपने तीरों से हुआ
उसकी आंखों का जल हूँ मैं ।
what a touchin line are these.....very nice avi

Puja October 22, 2008 at 4:09 PM  

well very heart n mind touchin poem..good

Er. Snigddha Aggarwal October 30, 2008 at 4:31 PM  

nice lines Avinash, very heart touching

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