Expect nothing, live frugally on surprise.

Wednesday, October 22, 2008

अचानक

फिर नदी अचानक सिहर उठी
यह कौन छू गया साझं ढले

संयम से बहते ही रहना
जिसके स्वभाव में शामिल था
दिन-रात कटावों के घर में
ढहना भी जिसका लाजिम थावह नदी अचानक लहर उठी
यह कौन छू गया सांझ ढले

छू लिया किसी सुधि के क्षण ने
या छंदभरी पुरवाई ने

या फिर गहराते सावन ने
या गंधमई अमराई ने
अलसायी धारा सँवर उठीं
यह कौन छू गया साँझ ढले
कैसा फूटा इसके जल में -

सरगम, किसने संगीत रचा
मिलना मुश्किल जिसका जग में
कैसे इसमें वह गीत बचा
सोते पानी में भँवर उठी
यह कौन छू गया साँझ ढले

कैसा फूटा इसके जल में -
सरगम, किसने संगीत रचा
मिलना मुश्किल जिसका जग में
कैसे इसमें वह गीत बचा


सोते पानी में भँवर उठी
यह कौन छू गया साँझ ढले

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