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Wednesday, October 22, 2008

बस टूटती लहरों के साए दिखते हैं


सागर के तीर पर रेत के मैंने और तुमने
जो घरोंदे स्नेह के बनाये थे कभी
नयनों में अपने कल्पनाओं के दीपक
साथ मिलकर जिस जगह जलाए थे कभी
अब वहाँ कुछ भी नज़र आता नहीं
बस टूटती लहरों के साए दिखते हैं ॥




कुछ पथिक , कुछ लहरों के कदमों तले
स्वप्न सारे रेत ही रेत में मिल गए

रोंद कर घर निर्दयी पग के कारवां
काफिलों के रूप धर दूर निकल गए
गीत अब माँझी अब वहाँ गाता नहीं
बस दिल तड़पता है और अश्रु चीखते हैं

अब नही वो अठखेलियाँ जिसकी फिजा में
आवाज मेरी आरजू की गूंजती थी
अब नही वहाँ लगते मेले चुहल के
जिनकी ज़िन्दगी कल बेफीक्र सी जहाँ घुमती थी
अब पाँव लहरों में वहाँ कोई भिगोता नहीं
बस लहरें टकराती हैं और पत्थर भीगते हैं ॥



दरख्त भी ख़ामोश से उजड़े से खड़े हैं छाँव में
जहाँ की कभी बैठे थे हम तुम
घास जो चुभती थी बदन में मखमल सी
अब आँख बंद करके वहां खड़ी है गुमसुम
तिनका कोई तोड़ के मूहँ में रखता नहीं
बस सीना उस जगह के पैर रौंदते हैं ॥

4 comments:

Unknown October 22, 2008 at 6:42 PM  

hi dear friend,
how r u?
ur blog is really nice...

pls visit my blog for great information..

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thank you dear
take care..

Dr.Nishi Chauhan October 22, 2008 at 6:50 PM  

अब पाँव लहरों में वहाँ कोई भिगोता नहीं
बस लहरें टकराती हैं और पत्थर भीगते हैं ॥

these lines r really nice
अब पाँव लहरों में वहाँ कोई भिगोता नहीं
बस लहरें टकराती हैं और पत्थर भीगते हैं ॥
good work.....

Prachi Pandey October 22, 2008 at 6:57 PM  

nicely written, very heart touchin lines

अविनाश October 30, 2008 at 11:35 PM  

Thx 4 ur comments sachin,saw ur blog nice one
keep it up

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