Expect nothing, live frugally on surprise.

Wednesday, February 4, 2009

"एहसास"

हर साँस मे जर्रा जर्रा
पलता है कुछ,
यूँ लगे साथ मेरे
चलता है कुछ.
सोच की गागर से
निकल शब्द बन
अधरों पे खामोशी से
मचलता है कुछ.
ये एहसास क्या ...
तुम्हारा है प्रिये ???
जो मोम बनके मुझमे ,
बर्फ़ मानिंद .....
पिघलता है कुछ

35 comments:

के सी February 4, 2009 at 3:22 PM  

बहुत खूब, अगर प्रिय तक न भी पहुंचे आपके शब्द, पाठक वृन्द भी आह्लादित होगा इनको पढ़के।

Dr. Pragya bajaj February 4, 2009 at 4:01 PM  

सोच की गागर से
निकल शब्द बन
अधरों पे खामोशी से
मचलता है कुछ.

सुशील छौक्कर February 4, 2009 at 4:27 PM  

सुन्दर शब्दों से सजी एक सुन्दर रचना।
हर साँस मे जर्रा जर्रा
पलता है कुछ,
यूँ लगे साथ मेरे
चलता है कुछ.

बहुत उम्दा।

Anonymous,  February 4, 2009 at 4:58 PM  

मचलता है कुछ.
ये एहसास क्या ...
तुम्हारा है प्रिये ???

Rohit Sharma February 4, 2009 at 5:20 PM  

हर साँस मे जर्रा जर्रा
पलता है कुछ,
यूँ लगे साथ मेरे
चलता है कुछ.
सोच की गागर से

Ashok February 4, 2009 at 6:33 PM  

मचलता है कुछ.
ये एहसास क्या ...
तुम्हारा है प्रिये ???

Anonymous,  February 4, 2009 at 6:58 PM  

Kya baat hai...

Anonymous,  February 4, 2009 at 7:29 PM  

जो मोम बनके मुझमे ,
बर्फ़ मानिंद .....
पिघलता है कुछ

Austeen Sufi February 4, 2009 at 8:34 PM  

जो मोम बनके मुझमे ,
बर्फ़ मानिंद .....
पिघलता है कुछ

Shweta Saxena February 4, 2009 at 9:38 PM  

निकल शब्द बन
अधरों पे खामोशी से
मचलता है कुछ.
ये एहसास क्या ...
तुम्हारा है प्रिये ???

Dr.Nishi Chauhan February 4, 2009 at 9:56 PM  

निकल शब्द बन
अधरों पे खामोशी से
मचलता है कुछ.
ये एहसास क्या ...
तुम्हारा है प्रिये ???

Dr. Aradhna February 4, 2009 at 10:43 PM  

अधरों पे खामोशी से
मचलता है कुछ.
ये एहसास क्या ...
तुम्हारा है प्रिये ???

Ritika Pandey February 5, 2009 at 12:33 AM  

निकल शब्द बन
अधरों पे खामोशी से
मचलता है कुछ.
ये एहसास क्या ...

Parul February 5, 2009 at 12:46 AM  

जो मोम बनके मुझमे ,
बर्फ़ मानिंद .....
पिघलता है कुछ

Prachi Pandey February 5, 2009 at 8:50 AM  

सोच की गागर से
निकल शब्द बन
अधरों पे खामोशी से
मचलता है कुछ.
ये एहसास क्या ...

Priya Mittal February 5, 2009 at 9:21 AM  

अधरों पे खामोशी से
मचलता है कुछ.
ये एहसास क्या ...

Vinay February 5, 2009 at 11:03 AM  

सीमा की सलाम!

saraswatlok February 5, 2009 at 2:25 PM  

अधरों पे खामोशी से
मचलता है कुछ.
ये एहसास क्या ...
तुम्हारा है प्रिये ???
जो मोम बनके मुझमे ,
बर्फ़ मानिंद .....
पिघलता है कुछ


बहुत ही मार्मिक, प्यार की गहराई का मधुर अहसास हैै।
बहुत खूब।

Jyoti Dixit February 5, 2009 at 4:45 PM  

अधरों पे खामोशी से
मचलता है कुछ.
ये एहसास क्या ...
तुम्हारा है प्रिये ???

Shreya Rajput February 5, 2009 at 5:24 PM  

अधरों पे खामोशी से
मचलता है कुछ.
ये एहसास क्या ...
तुम्हारा है प्रिये ???

Swati February 5, 2009 at 8:25 PM  

अधरों पे खामोशी से
मचलता है कुछ.
ये एहसास क्या ...

Radhika February 5, 2009 at 8:44 PM  

जो मोम बनके मुझमे ,
बर्फ़ मानिंद .....
पिघलता है कुछ

Austeen Sufi February 6, 2009 at 12:22 AM  

जो मोम बनके मुझमे ,
बर्फ़ मानिंद .....
पिघलता है कुछ

Er. Nidhi Mishra February 6, 2009 at 10:23 AM  

तुम्हारा है प्रिये ???
जो मोम बनके मुझमे ,
बर्फ़ मानिंद .....
पिघलता है कुछ
wah kya baat hai

Shilpi February 6, 2009 at 11:02 AM  

अधरों पे खामोशी से
मचलता है कुछ.
ये एहसास क्या ...
तुम्हारा है प्रिये ???

Anita February 6, 2009 at 12:19 PM  

सुन्दर रचना सीमा जी. बधाई!!

Anonymous,  February 6, 2009 at 4:04 PM  

जो मोम बनके मुझमे ,
बर्फ़ मानिंद .....
पिघलता है कुछ

अनिल कान्त February 7, 2009 at 10:33 AM  

ultimate ....बहुत ही खूबसूरत रचना .....

Priya Mittal February 7, 2009 at 5:54 PM  

निकल शब्द बन
अधरों पे खामोशी से
मचलता है कुछ.
ये एहसास क्या ...

Parul February 7, 2009 at 8:03 PM  

निकल शब्द बन
अधरों पे खामोशी से
मचलता है कुछ.
ये एहसास क्या

Dr.Ruchika Rastogi February 10, 2009 at 2:03 PM  

अधरों पे खामोशी से
मचलता है कुछ.
ये एहसास क्या

  © Free Blogger Templates Blogger Theme by Ourblogtemplates.com 2008

Back to TOP