"एहसास"
हर साँस मे जर्रा जर्रा
पलता है कुछ,
यूँ लगे साथ मेरे
चलता है कुछ.
सोच की गागर से
निकल शब्द बन
अधरों पे खामोशी से
मचलता है कुछ.
ये एहसास क्या ...
तुम्हारा है प्रिये ???
जो मोम बनके मुझमे ,
बर्फ़ मानिंद .....
पिघलता है कुछ
All about India's capital.
हर साँस मे जर्रा जर्रा
पलता है कुछ,
यूँ लगे साथ मेरे
चलता है कुछ.
सोच की गागर से
निकल शब्द बन
अधरों पे खामोशी से
मचलता है कुछ.
ये एहसास क्या ...
तुम्हारा है प्रिये ???
जो मोम बनके मुझमे ,
बर्फ़ मानिंद .....
पिघलता है कुछ
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35 comments:
sundar rachna seemajee
बहुत खूब, अगर प्रिय तक न भी पहुंचे आपके शब्द, पाठक वृन्द भी आह्लादित होगा इनको पढ़के।
सोच की गागर से
निकल शब्द बन
अधरों पे खामोशी से
मचलता है कुछ.
सुन्दर शब्दों से सजी एक सुन्दर रचना।
हर साँस मे जर्रा जर्रा
पलता है कुछ,
यूँ लगे साथ मेरे
चलता है कुछ.
बहुत उम्दा।
मचलता है कुछ.
ये एहसास क्या ...
तुम्हारा है प्रिये ???
हर साँस मे जर्रा जर्रा
पलता है कुछ,
यूँ लगे साथ मेरे
चलता है कुछ.
सोच की गागर से
मचलता है कुछ.
ये एहसास क्या ...
तुम्हारा है प्रिये ???
Kya baat hai...
जो मोम बनके मुझमे ,
बर्फ़ मानिंद .....
पिघलता है कुछ
जो मोम बनके मुझमे ,
बर्फ़ मानिंद .....
पिघलता है कुछ
निकल शब्द बन
अधरों पे खामोशी से
मचलता है कुछ.
ये एहसास क्या ...
तुम्हारा है प्रिये ???
निकल शब्द बन
अधरों पे खामोशी से
मचलता है कुछ.
ये एहसास क्या ...
तुम्हारा है प्रिये ???
अधरों पे खामोशी से
मचलता है कुछ.
ये एहसास क्या ...
तुम्हारा है प्रिये ???
निकल शब्द बन
अधरों पे खामोशी से
मचलता है कुछ.
ये एहसास क्या ...
जो मोम बनके मुझमे ,
बर्फ़ मानिंद .....
पिघलता है कुछ
waah1 Kya baat hai
सोच की गागर से
निकल शब्द बन
अधरों पे खामोशी से
मचलता है कुछ.
ये एहसास क्या ...
अधरों पे खामोशी से
मचलता है कुछ.
ये एहसास क्या ...
सीमा की सलाम!
अधरों पे खामोशी से
मचलता है कुछ.
ये एहसास क्या ...
तुम्हारा है प्रिये ???
जो मोम बनके मुझमे ,
बर्फ़ मानिंद .....
पिघलता है कुछ
बहुत ही मार्मिक, प्यार की गहराई का मधुर अहसास हैै।
बहुत खूब।
अधरों पे खामोशी से
मचलता है कुछ.
ये एहसास क्या ...
तुम्हारा है प्रिये ???
अधरों पे खामोशी से
मचलता है कुछ.
ये एहसास क्या ...
तुम्हारा है प्रिये ???
अधरों पे खामोशी से
मचलता है कुछ.
ये एहसास क्या ...
जो मोम बनके मुझमे ,
बर्फ़ मानिंद .....
पिघलता है कुछ
good one ma'am
जो मोम बनके मुझमे ,
बर्फ़ मानिंद .....
पिघलता है कुछ
तुम्हारा है प्रिये ???
जो मोम बनके मुझमे ,
बर्फ़ मानिंद .....
पिघलता है कुछ
wah kya baat hai
अधरों पे खामोशी से
मचलता है कुछ.
ये एहसास क्या ...
तुम्हारा है प्रिये ???
सुन्दर रचना सीमा जी. बधाई!!
जो मोम बनके मुझमे ,
बर्फ़ मानिंद .....
पिघलता है कुछ
sundar
ultimate ....बहुत ही खूबसूरत रचना .....
निकल शब्द बन
अधरों पे खामोशी से
मचलता है कुछ.
ये एहसास क्या ...
निकल शब्द बन
अधरों पे खामोशी से
मचलता है कुछ.
ये एहसास क्या
अधरों पे खामोशी से
मचलता है कुछ.
ये एहसास क्या
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