"वादों के पुष्प"
बिखेरता रहा वादों के पुष्प वो
मै आँचल यकीन का बिछाये
उन्हें समेटती रही....
अपने स्पर्श की नमी से वो
उन पुष्पों को जिलाता रहा
मै मासूम शिशु की तरह
उन्हें सहेजती रही......
हवाओं को रंगता रहा वो
इन्द्रधनुषी ख्वाबो की तुलिका से
मै बंद पलकों मे
उन्हें बिखेरती रही ....
आज सभी वादों का वजूद
अपना आस्तित्व खोने लगा .......
मै अवाक टूटते मिटते हुए
उन्हें देखती रही........
7 comments:
आज मै उन्हें देखती रही ख्वाब बिखेरती रही ...
बहुत ही प्रभावशाली लिखा है
हवाओं को रंगता रहा वो
इन्द्रधनुषी ख्वाबो की तुलिका से
मै बंद पलकों मे
उन्हें बिखेरती रही ....
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
very nice...
अपने स्पर्श की नमी से वो
उन पुष्पों को जिलाता रहा
मै मासूम शिशु की तरह
उन्हें सहेजती रही......
सीमा जी ,
बहुत खूबसूरत और भावनात्मक कविता ..
बधाई स्वीकारें .
हेमंत कुमार
school mein padhti thi hindi kavitaayen......aaj phir se padhne ko mila!!!
bikherta raha wado ke pushp wo main aanchal yakeen ka bichhaye unhe smetti rahee.....kahi na kahi mere ahsaas hai ye....boht hi achha....
आज सभी वादों का वजूद
अपना आस्तित्व खोने लगा .......
मै अवाक टूटते मिटते हुए
उन्हें देखती रही........
Post a Comment