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Monday, December 22, 2008

"फिर उसी शाख़ पर"


"फिर उसी शाख़ पर"

गीत कोई आज, यूँ ही गुनगुनाया जाए,
शब्दों को सुर-ताल से सजाया जाए
बेचैनियों को करके दफ़्न
दिल के किसी कोने में,
रागिनियों से मन को बहलाया जाए
ख़ामोशी के आग़ोश से
दामन को छुड़ा कर,
ज़रा,स्वर को अधरों से छलकाया जाए
शक्वों के मौसम को
करके रुख़सत दर से
मोहब्बत की चाँदनी में नहाया जाए
उजालों के आँचल में
सज कर सँवर कर
आईने में ख़ुद से ही शरमाया जाए
परदए-नाज़ो-अंदाज़
उनको दिखलाकर,
ख़िरामा ख़िरामा चल कर आया जाए
बर्क़ को न देकर के
ज़रा भी मोहलत,
फिर उसी शाख़ पर नशेमन बनाया जाए
(शक्वों = शिकायतों
ख़िरामा = आहिस्ता
बर्क़ = बिजली
नशेमन = घोंसला )

21 comments:

अविनाश December 22, 2008 at 5:21 PM  

मोहब्बत की चाँदनी में नहाया जाए
उजालों के आँचल में
सज कर सँवर कर
आईने में ख़ुद से ही शरमाया जाए

Anonymous,  December 22, 2008 at 5:26 PM  

beautiful composition

Dr. Pragya bajaj December 22, 2008 at 5:33 PM  

मोहब्बत की चाँदनी में नहाया जाए
उजालों के आँचल में
सज कर सँवर कर
आईने में ख़ुद से ही शरमाया जाए
परदए-नाज़ो-अंदाज़

Anonymous,  December 22, 2008 at 5:34 PM  

आईने में ख़ुद से ही शरमाया जाए
परदए-नाज़ो-अंदाज़
उनको दिखलाकर,
ख़िरामा ख़िरामा चल कर आया जाए
बर्क़ को न देकर के
ज़रा भी मोहलत,

Anonymous,  December 22, 2008 at 7:41 PM  

ख़िरामा ख़िरामा चल कर आया जाए
बर्क़ को न देकर के
ज़रा भी मोहलत,
फिर उसी शाख़ पर नशेमन बनाया जाए

Anonymous,  December 22, 2008 at 7:41 PM  

ख़ामोशी के आग़ोश से
दामन को छुड़ा कर,

Dr.Nishi Chauhan December 22, 2008 at 8:00 PM  

ख़िरामा ख़िरामा चल कर आया जाए
बर्क़ को न देकर के
ज़रा भी मोहलत,
फिर उसी शाख़ पर नशेमन बनाया जाए

Dr. Palki Vajpayee December 22, 2008 at 10:34 PM  

उजालों के आँचल में
सज कर सँवर कर
आईने में ख़ुद से ही शरमाया जाए
परदए-नाज़ो-अंदाज़
उनको दिखलाकर,

Anonymous,  December 22, 2008 at 10:39 PM  

ख़िरामा ख़िरामा चल कर आया जाए
बर्क़ को न देकर के
ज़रा भी मोहलत,
फिर उसी शाख़ पर नशेमन बनाया जाए

Ashok December 23, 2008 at 10:25 AM  

दामन को छुड़ा कर,
ज़रा,स्वर को अधरों से छलकाया जाए
शक्वों के मौसम को
करके रुख़सत दर से
मोहब्बत की चाँदनी में नहाया जाए
उजालों के आँचल में

Er. Paayal Sharma December 23, 2008 at 11:39 AM  

ज़रा भी मोहलत,
फिर उसी शाख़ पर नशेमन बनाया जाए

Rohit Sharma December 23, 2008 at 11:54 AM  

आईने में ख़ुद से ही शरमाया जाए
परदए-नाज़ो-अंदाज़
nice lines
regards

Anonymous,  December 23, 2008 at 4:11 PM  

beautiful composition

Anonymous,  December 23, 2008 at 4:38 PM  

very good one
Regards

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