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Thursday, January 15, 2009

"प्रेम"

भावों से भी व्यक्त ना हो,
ना अक्षर में बांधा जाए
खामोशी की व्याकरण बांची
अर्थ नही कोई मिलपाये
अश्रु से भी प्रकट ना हो
ना अधरों से छलका जाए
मौन आवरण मे सिमटा
ये प्रेम प्रतिपल सकुचाये

33 comments:

Dr.Bhawna Kunwar January 15, 2009 at 12:58 PM  

Bahut sundar bhav ..bahut-2 badhai ...

Anonymous,  January 15, 2009 at 1:27 PM  

Beautiful feeling enveloping the poem ,well written !!! thnx a lot for sharing ..

Anonymous,  January 15, 2009 at 4:49 PM  

अश्रु से भी प्रकट ना हो
ना अधरों से छलका जाए
मौन आवरण मे सिमटा
ये प्रेम प्रतिपल सकुचाये

Dr. Palki Vajpayee January 15, 2009 at 5:01 PM  

मौन आवरण मे सिमटा
ये प्रेम प्रतिपल सकुचाये

Anonymous,  January 15, 2009 at 6:32 PM  

मौन आवरण मे सिमटा
ये प्रेम प्रतिपल सकुचाये
sundar rachna

Dr.Nishi Chauhan January 15, 2009 at 6:45 PM  

भावों से भी व्यक्त ना हो,
ना अक्षर में बांधा जाए
खामोशी की व्याकरण बांची
अर्थ नही कोई मिलपाये

Shreya Rajput January 15, 2009 at 7:11 PM  

भावों से भी व्यक्त ना हो,
ना अक्षर में बांधा जाए
खामोशी की व्याकरण बांची

R. Ramesh January 15, 2009 at 7:49 PM  

Dr Nishi
thanks a tonne 4 passing by my blog..all the best to u and friends..

Er. Nidhi Mishra January 15, 2009 at 8:13 PM  

भावों से भी व्यक्त ना हो,
ना अक्षर में बांधा जाए
खामोशी की व्याकरण बांची

Er. Paayal Sharma January 16, 2009 at 2:50 AM  

अर्थ नही कोई मिलपाये
अश्रु से भी प्रकट ना हो
ना अधरों से छलका जाए

Puja January 16, 2009 at 4:16 AM  

खामोशी की व्याकरण बांची
अर्थ नही कोई मिलपाये

Dr. Neha Srivastav January 16, 2009 at 4:58 AM  

सफल प्रयास, सून्दर कविता, बहुत अच्छा लगा
धन्यवाद

Er. Paayal Sharma January 16, 2009 at 5:30 AM  

वाह क्या बात है!!हमेशा की तरह एक और बेहतरीन कविता, सुन्‍दर रचना
धन्यवाद

Anita January 16, 2009 at 6:51 AM  

प्रेम भाव की सुन्दर अभिव्यक्ति. बेहतरीन रचना. बहूत स्फल प्रयास. धन्यवाद

Dr.Nishi Chauhan January 16, 2009 at 7:43 AM  

प्रेम को बहुत ही सहज भाव सी आपने प्रकट किया है सीमाजी. हमेशा के तरह एक बेतरीन कविता.
धन्यवाद

Anonymous,  January 16, 2009 at 7:52 AM  

प्रेम को व्यक्त करना सचमुच मे एक मुस्किल भरा कार्य हे. आपने इसे बहुत सरलता से और शब्दो का माया जाल बुन के किया है सीमाजी
धन्यवाद

Er. Snigddha Aggarwal January 16, 2009 at 7:54 AM  

अर्थ नही कोई मिलपाये
अश्रु से भी प्रकट ना हो
ना अधरों से छलका जाए
मौन आवरण मे सिमटा
sundar rachna
Regards

Prachi Pandey January 16, 2009 at 8:12 AM  

सुंदर कविता. एक बेतरीन और सफल प्रयास सीमाजी

धन्यवाद

Jyoti Dixit January 16, 2009 at 8:50 AM  

भावों से भी व्यक्त ना हो,
ना अक्षर में बांधा जाए
खामोशी की व्याकरण बांची
अर्थ नही कोई मिलपाये

Ria January 16, 2009 at 9:02 AM  

सुंदर रचना. प्रेम भाव का सफल प्रयास. धनयवाद

Ria January 16, 2009 at 9:16 AM  

अश्रु से भी प्रकट ना हो
ना अधरों से छलका जाए
मौन आवरण मे सिमटा
ये प्रेम प्रतिपल सकुचाये

Dr. Palki Vajpayee January 16, 2009 at 10:14 AM  

मौन आवरण मे सिमटा
ये प्रेम प्रतिपल सकुचाये
सुंदर रचना एक बेहतरीन प्रयास सीमाजी.
धन्यवाद

Dr. Neha Srivastav January 16, 2009 at 5:40 PM  

अश्रु से भी प्रकट ना हो
ना अधरों से छलका जाए
मौन आवरण मे सिमटा
ये प्रेम प्रतिपल सकुचाये

Prachi Pandey January 17, 2009 at 7:39 AM  

मौन आवरण मे सिमटा
ये प्रेम प्रतिपल सकुचाये

Anonymous,  January 17, 2009 at 10:08 PM  

अश्रु से भी प्रकट ना हो
ना अधरों से छलका जाए
मौन आवरण मे सिमटा
ये प्रेम प्रतिपल सकुचाये

Anonymous,  January 18, 2009 at 2:55 AM  

मौन आवरण मे सिमटा
ये प्रेम प्रतिपल सकुचाये

Parul January 18, 2009 at 12:14 PM  

अश्रु से भी प्रकट ना हो
ना अधरों से छलका जाए
मौन आवरण मे सिमटा
ये प्रेम प्रतिपल सकुचाये

सुशील छौक्कर February 4, 2009 at 4:52 PM  

एक अहसास ये भी होता है।
बहुत उम्दा।

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